Wednesday, March 9, 2011

usha






गिर गयी उषा के हाथ से
सिन्दूर की दानी
और बिखर गयी लाली .
धुंध का लिहाफ ओढ़े
पड़ी हुई वसुंधरा ने
जब ली अंगड़ाई, तो
चिड़ियाँ भी चह्चहायीं .
सुनकर खगों का शोर
दिनकर ने भी आँखें मलीं
और नींद भरा, लाल मुख 
लेकर उपस्थित हो गए .
उषा ने लाली समेटकर
चन्दन का तिलक सूर्य के
माथे पर लगा दिया,
और फिर वो कहाँ लोप हुई
सूरज ने ध्यान ना दिया .
और कुछ ही देर में
नीले समंदर के बीच
दीख पड़ा सबको
इक आग का गोला .
उस आग ने सबको तपाया
पर आई फिर संध्या की छाया.
संध्या जो आई तो
अनल कुछ शांत हो गया,
लपटें चली गयीं
बचा बस लाल कोयला .
इतने में आ पहुंची निशा,
माथे पे चाँद की बिंदिया ,
और काले आँचल में उसके
तारों की अबरक चमके ,
कुछ को सुलाया
कुछ को जगाया निशा ने .

कई प्रहर वह ठहरी रही
पर अंततः थक ही गयी,
और लो !
फिर आ पहुंची उषा.   

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